बेटे ने किया मरणोपरांत पिता के शरीर का मेडिकल कालेज को दान

मृत देह किसी काम की नहीं होती, लेकिन इसी मृत देह के जरिए मेडिकल छात्र काबिल डॉक्टर अवश्य बन सकते हैं। एमबीबीएस और बीडीएस की शिक्षा में मृत देह का ठीक वैसे ही महत्व है जैसे किसी मकान के निर्माण में नींव का, लेकिन असल दिक्कत देहदान की कमी है।संभाग के सबसे बड़े जेएलएन अस्पताल के मेडिकल कॉलेज में आज एक शख्स के जिस्म दान किया गया। अजमेर के सिंधु वाड़ी में रहने वाले मोतीलाल पवार नहीं अपने जीते जी  यह वसीयत की,  कि  उसके मरने के बाद उसके शरीर को मेडिकल कॉलेज  को दान कर दिया जाए। उसकी मृत्यु के पश्चात आज उनके लड़के ने अपने पिता के जिस्म को अजमेर मेडिकल कॉलेज में दान कर दिया। मोतीलाल पवार ने अपनी जिंदगी में यह फैसला इसलिए लिया कि जो आंखों से अंधे, दुनिया को नहीं देख पा रहे या कानों से बहरे किसी की अच्छी बुरी बात नहीं सुन पा रहे उन्हें इनकी आंखें और कान और उसका शरीर किसी न किसी रूप में काम आ सके। साथ ही मेडिकल स्टूडेंट्स उनके जिस्म की जांच कर इंसान के जिस्म के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारियां निकाल पाए। इसी ख्वाहिश के चलते उन्होंने अपनी जिंदगी में अपने जिस्म को दान करने की वसीयत की थी। इसी वसीयत के अनुसार मेडिकल कॉलेज को आज उनका शरीर दान कर दिया गया।