अजमेर। अखिल भारतीय बेरोजगार मजदूर किसान संघर्ष समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोज दुबे व राष्ट्रीय महासचिव तथा अजमेर संभाग के प्रभारी शैलेन्द्र अग्रवाल ने कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा पलायन को मजबूर प्रवासी मजदूरों को विषम परिस्थितियों में अपने हाल पर छोड़ देना संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है।
दुबे व अग्रवाल ने कहा कि सरकार के द्वारा जब कोटा में फंसे छात्रों व विदेशों में फंसे लोगों को अपने घरों तक पहुचाया जा सकता है विधायक को अपनी बेटी को कोटा से वापस ले जाने के लिए वीआईपी पास जारी कर सकती है तो केवल प्रवासी मजदूरों के मामले में ही दोहरे मापदंड क्यो अपनाए जा रहे प्रवासी मजदूरों को ना घरों को जाने की व्यवस्था की जा रही है ना पर्याप्त भोजन की आखिर क्यों?
दुबे व अग्रवाल ने सरकार से मांग करते हुए कहा कि कोरोना वायरस की इस संकट की घड़ी में लॉकडाउन में खाद्य सामग्री की कमी से देश के करोड़ों गरीब बेरोजगार मजदूर जूझ रहे है ओर दूसरी ओर गोदाम अनाजों से भरे पड़े है जबकि करोड़ों गरीब बेरोजगार मजदूर भूखे पेट खाद्य सामग्री का इंतजार कर रहे हैं। उन्हें पर्याप्त खाद्य सामग्री क्यों नही दी जा रही?
दुबे व अग्रवाल ने कहा कि अपनी भूख को मिटाने के लिए गरीब बेरोजगार मजदूर अपना घर छोड़कर दूसरे राज्यों के शहरों में काम करने के लिए जाते हैं लेकिन आज यही भूख ओर प्यास प्रवासी गरीब बेरोजगार मजदूरों के लिए परेशानी का कारण बन रही है एक 12 वर्ष की मासूम बालिका व अन्य लगभग 30 से ज्यादा प्रवासी मजदूर पलायन के दौरान अलग अलग स्थानों पर भूख प्यास से लड़ते हुए बेमौत मर गए। फिर भी संवेदनहीन सरकार का कलेजा नहीं पसीजा। भूखे प्यासे गरीब बेरोजगार मजदूर आज पलायन को मजबूर हो रहे है। जरुरत है ऐसे समय में गरीब बेरोजगार मजदूरों को पर्याप्त राहत व सम्बल देने की।
दुबे व अग्रवाल ने कहा कि भारतीय खाद्य निगम के भंडारो में करोड़ों टन गेहूं भरा पड़ा है और नया गेहूं भी आ रहा है। ऐसे में केन्द्र सरकार उन परिवारों को जिनके पास राशन कार्ड नहीं है और जिनके नाम राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना में नहीं हैं, उन्हें भी 10 किलो गेहूं, 10 किलो चावल, दाल व शक्कर सहित पर्याप्त खाद्य सामग्री हर सप्ताह उपलब्ध करावे ताकि किसी भी गरीब बेरोजगार मजदूरों व आम आदमी को भूखा नहीं सोना पड़े। लेकिन लगातार मांग के बाद भी गरीब बेरोजगार मजदूरों व आम आदमी को पर्याप्त खाद्य सामग्री नही दी जा रही।
दुबे व अग्रवाल ने कहा की सरकार को राजधर्म का निर्वाह करते हुए गरीब प्रवासी मजदूरों को पर्याप्त खाद्य सामग्री उपलव्ध करवानी चाहिए थी सरकार की जिम्मेदारी है कि कोई भूखा ना रहे लेकिन फिर भी सरकार के द्वारा राजधर्म की पालना नही की जा रही जिसका खामियाजा प्रवासी मजबूरों को चुकाना पड़ रहा है।
दुबे व अग्रवाल ने कहा कि सरकार गरीब बेरोजगार मजदूरों को राहत देने की बड़ी बड़ी बातें कर रही है लेकिन दिल्ली, मुंबई, गुजरात, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, मध्यप्रदेश सहित देश के अधिकांश प्रदेशो के प्रवासी मजदूरों के पलायन ने सरकार के सभी दावों की पोल खोल कर रख दी अगर मजदूरों को राहत मिल रही होती तो मजदूर पलायन को मजबूर नही होते। सरकारी राहत केवल कागजी साबित हो रही है।
पलायन को मजबूर मजदूरों को विषम परिस्थितियों में अपने हाल पर छोड़ देना संवेदनहीनता की पराकाष्ठा