विचारों पर चलकर ही बदलाव आएगा - पत्रकार जावेद खान

                        - पत्रकार जावेद खान -


विश्वभर में कोरोना का कोहराम है, हर जगह हाहाकार मचा है। प्रशासन चीख-चीख कर जनता से घरों में रहने की अपील कर रहा है। बुजूर्गो और बच्चों के घरों से बाहर निकलने की पूरी तरह से पाबन्दी है। बावजूद इसके लोगों ने घरों से निकलना बन्द नहीं किया। किसी ना किसी बहाने से घरों से बाहर निकलना है बस। लोग इसको अपनी शान समझ रहें है, कि हम पुलिस प्रशासन को ठेंगा बता सारे बाजार में घूम फिर कर घर मे आ गए।
पुलिस कर्मी, चिकित्सक, सफाई कर्मी, समाज सेवी संस्थाओं और पत्रकारों के परिजनों से पूछो उनकी क्या हालत है। जब उनको सिर्फ और सिर्फ आपकी सुरक्षा के लिए खुद की जान को खतरे में डाल कर बाहर निकलना पड़ता है। कोई नहीं समझ रहा है, इस महामारी को सबनेे मजाक बना के रखा है। हम बेहद खुशनसीब है जो हमें 21 व 31 या 45 दिन का समय मिला इस बिमारी की चैन तोडऩे का। 
चीन अमरीका सहित अन्य देशों को तो सोचने का मौका भी नहीं मिला और प्रतिदिन हजारों की संख्या में लाशेे बिछ गई। खानदान के खानदान, पूरे पूरे परिवार चंद सैकण्डों मे मिट्टी हो गए। कोई परिवार का नाम चलाने वाला वारिस तक नहीं बचा। हम सभी लडाई लडने में बेहद एकजूटता दिखाते यहां असली समय है। मजबूती से एकजुटता दिखाने का, एकजुटता भी ऐसी की सभी को एकजुट होकर घरों में ही रहना है। बस सरकार की इतनी अपील आप लोग मान लीजिए हम कोरोना पर बहुत जल्द ही विजय हासिल कर लेगे और फिर वह दिन हमारे लिए दीपावली और ईद से कम नहीं होगा।
अगर आप चाहते हैं कि भारत राष्ट्र आबाद रहें और मानवता के पतन के बजाय उसका विकास होता रहें। तो हमें बिना समय गवांए अपने-अपने घरों में सुरक्षित रहना ही होगा और हमारा घर ही नोबेल कोरोना वायरस की एंटीबाईटिक दवा साबित होगी।
हम समाज को बदल सकते है, अगर प्रत्येक व्यक्ति बदल जाए तो समाज को बदलने में भी वक्त नही लगेगा। घरों में ही रहकर कोरोना वायरस में कमी लाकर देश का विकास सुनिश्चित किया जा सकता है बल्कि यह निरंतर विकास की एक शर्त से भी कम नही है। कोरोना वायरस को खत्म करने की ताकत देश के युवा वर्ग के पास है।
युवा वर्ग समाज में अच्छी आदतों का पक्ष लेकर परिवर्तन ला सकते है, यदि प्रत्येक घरों के नौजवान अपने-अपने माता-पिता बच्चों व अन्य सदस्यों को घरों से बाहर निकलने के लिए रोक सकें तो हमारा देश शीघ्र नोबेल कोरोना वायरस मुक्त देश बन सकता है। विचारों को पढ़कर नहीं विचारों पर चलकर ही बदलाव आएगा, हम सुरक्षित तो देश सुरक्षित, जीतेगा भारत हारेगा नोबेल कोरोना वायरस।
बेवजह घरों से निकलने की जरूरत क्या है, मौत से आंख मिलाने की जरूरत क्या है,
सबको मालूम है बाहर की हवा है कातिल, यूं ही कातिल से उलझने की जरूरत क्या है।
जिन्दगी एक नियामत है, इसे सभांल के रखिए कब्रिस्तानों को सजाने की जरूरत क्या है,
दिल बहलने के लिए घर में वजह है काफी, यूं ही गलियों में भटकने की जरूरत क्या है।।